लखनऊ/नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश में भाजपा की करारी हार के बाद मंथन का दौर चल रहा है, पिछले तीन दिन से लखनऊ में चल रही मैराथन बैठकों में सीटवार जानकारी जुटाई जा रही है. तीन स्तर पर फीडबैक लिया जा रहा है. सबसे पहले हारे हुए उम्मीदवार से पूछा जा रहा है, लोकसभा क्षेत्रवार भेजी […]
लखनऊ/नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश में भाजपा की करारी हार के बाद मंथन का दौर चल रहा है, पिछले तीन दिन से लखनऊ में चल रही मैराथन बैठकों में सीटवार जानकारी जुटाई जा रही है. तीन स्तर पर फीडबैक लिया जा रहा है. सबसे पहले हारे हुए उम्मीदवार से पूछा जा रहा है, लोकसभा क्षेत्रवार भेजी गई विशेष टीम से फीडबैक लिया जा रहा है. तीसरी रिपोर्ट मंडल स्तर पर तैयार कराई जा रही है. तीनों रिपोर्ट के आधार पर प्रदेश स्तर पर रिपोर्ट बनेगी और उसे केंद्रीय नेतृत्व को भेजा जाएगा.
गुरुवार को अवध क्षेत्र के नेताओं की बैठक हुई और शुक्रवार को कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र के उम्मीदवारों और पदाधिकारियों से रिपोर्ट ली गई. कानपुर-बुंदेलखंड में भाजपा को 10 सीटों में से सिर्फ 4 सीटें मिली है जबकि अवध क्षेत्र की 16 सीटों में से भगवा पार्टी को महज 7 सीटों पर संतोष करना पड़ा है. सबसे बड़ा सवाल यही है कि सूबे में 2014 में 71 और 2019 में 62 सीटें जीतने वाली भाजपा से चूक कहां हुई कि वह महज 33 सीटों पर सिमट गई. तीन दिन के मंथन में जो जानकारी छनकर बाहर आई है उसके मुताबिक तीन कारणों से यूपी में भगवा पार्टी को मुंह की खानी पड़ी है.
पहला कारण है उम्मीदवारों के चयन में गलती, दूसरा है भितरघात यानी कि भाजपा एक लड़ाई विपक्ष से लड़ रही थी और दूसरी अपनों से. कार्यकर्ता नाराज थे, कई जगहों पर ऊपर से उम्मीदवार थोप दिये गये और कई जगहों पर विरोध के बावजूद पुराने सांसद को ही टिकट दे दिया गया. फैजाबाद-अयोध्या का उदाहरण सबके सामने है. हार के लिए तीसरा सबसे बड़ा कारण बना है भाजपा का 400 पार का नारा और उसके खिलाफ विपक्ष का नैरेटिव. विपक्ष पिछड़ों दलितों और मुस्लिमों को यह समझाने में कामयाब रहा कि एनडीए चार सौ इसलिए मांग रहा है कि बाबा साहेब आंबेडकर द्वारा बनाये गये संविधान को बदलकर आरक्षण खत्म कर दिया जाए.
बात सिर्फ इतनी नहीं है कि दिल्ली का रास्ता देने वाले यूपी में बीजेपी बुरी तरह हार गई. तीन साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर चुनौतियां बढ़ गई है. 43 सीटें जीतने वाले इंडी गठबंधन के कार्यकर्ताओं में जोश और उत्साह है और भाजपा में आरोप प्रत्यारोप का दौर चल रहा है. चुनाव में हार जीत के बाद ऐसा होना स्वभाविक है. आरएसएसस प्रमुख मोहन भागवत और इंद्रेश कुमार ने परिणाम के बाद जो बयान दिये थे उससे भाजपा में कोलाहल है. लेकिन इसी बीच शनिवार को सूबे के सीएम योगी आदित्यनाथ आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से गोरखपुर में मिल रहे हैं. आखिर वह भागवत को क्या जवाब देंगे?
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