नई दिल्ली: मोनी रॉय और विक्रांत मैसी की ये फिल्म ब्लैकआउट आज ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हो गई है. इस मूवी को देखने से पहले पढ़ लीजिए रिव्यू. कई स्टार और फिल्ममेकर कई बार ये खुलासा कर चुके हैं कि कुछ फिल्में वो मजबूरी में करते हैं. कभी किसी से रिश्ते निभाने की, कभी पैसे […]
नई दिल्ली: मोनी रॉय और विक्रांत मैसी की ये फिल्म ब्लैकआउट आज ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हो गई है. इस मूवी को देखने से पहले पढ़ लीजिए रिव्यू.
कई स्टार और फिल्ममेकर कई बार ये खुलासा कर चुके हैं कि कुछ फिल्में वो मजबूरी में करते हैं. कभी किसी से रिश्ते निभाने की, कभी पैसे की मजबूरी और कभी कोई और कारण. ये फिल्म भी किसी मजबूरी में बनाई गई, दोनों ने किस मजबूरी में ये फिल्म की, ये कारण सामने आनी जरूरी है क्योंकि ये फिल्म टाइम खराब करती है, इसलिए आप इस फिल्म की रिव्यू पढ़ लीजिए.
ये कहानी है पुणे की एक रात की, जहां रात को बिजली गुल हो जाती है, और फिर एक रिपोर्टर विक्रांत मैसी जो अपनी वाइफ के लिए अंडा पाव लेने निकलते हैं. उसके बाद फिर होते हैं एक के बाद एक हादसे, चोरों की एक गाड़ी से उनकी गाड़ी टकरा जाती है. उनसे एक मर्डर हो जाता है, उसे एक शराबी सुनील ग्रोवर देख लेता है और फिर उसके बाद जो होता है वो देखना बेकार है.
बता दें कि शुरुआत में ऐसा लगता है ये एक चलने लायक ठीक-ठाक मूवी है. कुछ ट्विस्ट आते हैं जो देखकर लगता है कि फिल्म में आगे मजा आएगा लेकिन फिर हमारे उम्मीदों का ऐसा शॉर्ट सर्किट होता है कि आपको लगता है अगर ब्लैकआउट हो जाता और आप अकेले अंधेरे में भी टाइम वेस्ट करते तो इससे बेहतर हो सकता है. कुछ वक्त के बाद फिल्म इतने बच्चों वाली तरीके से आगे बढ़ती है कि आपको समझ नहीं आता कि ये फिल्म क्यों बनाई गई और ये क्या कहना चाहते है. ये फिल्म में एक्शन ऐसा लगता है कि जैसे जिसे देखकर रोना आ जाता है, और क्लाइमैक्स तक आते आते आपके सब्र का ब्लैकआउट हो जाता है.
विक्रांत मैसी का हाइट 12th फेल के बाद काफी बढ़ गया है. ये फिल्म उन्होंने कब की, किस कारण बस में की, ये वही बता सकते हैं लेकिन उन्होंने फिल्म को खास प्रमोट नहीं किया. इससे पता लगा सकते है कि विक्रांत मैसी को फिल्म देखने के बाद क्या लगता होगा. सुनील ग्रोवर जब तक शराबी के किरदार में होते हैं तो अच्छे लगते हैं और वो गालिब वाली शायरियां भी मारते हैं जो मनोरंजन लगती हैं लेकिन उसके बाद जैसे ही वो डॉन के रोल में आते हैं तो उनका सस्ते से गालिब वाला रोल भी काफी महंगा लगने लगता है. और वहीं मौनी रॉय ने ये फिल्म क्यों की ये मुश्किल सवाल उनसे पूछा जाना चाहिए।
देवांग भावसर ने ये फिल्म डायरेक्ट की है. अच्छे कलाकारों को कैसे बर्बाद किया जाता है, ये ट्रेनिंग इनसे ली जा सकती है. ठीक ठाक शुरुआत के बाद भी इस फिल्म को उन्होंने बहुत खराब तरीके से डायरेक्ट किया.
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